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राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का प्रतिनिधिमंडल महानिदेशक स्कूल शिक्षा से मिला, विद्यालय मर्जर के विरोध में सौंपा ज्ञापन

 

*राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का प्रतिनिधिमंडल महानिदेशक स्कूल शिक्षा से मिला, विद्यालय मर्जर के विरोध में सौंपा ज्ञापन* 

 

`लखनऊ : 24 जून।` शिक्षा मानव निर्माण की पहली सीढ़ी है, आज का बच्चा ही कल देश का भावी नागरिक होगा। इसलिए सरकार को विद्यालयों के बंद करने के स्थान पर बेसिक शिक्षा में सुधार संकल्प के रूप में अपनाया जाना चाहिए तथा परिषदीय विद्यालयों को आर्थिक घाटे के रूप में प्रदर्शित करने की नीयत के स्थान पर भारतीय संस्कृति, सभ्यता और भारतीय जीवन मूल्यों को विकसित करने वाले केन्द्र के रूप में देखना होगा।  

उक्त बात राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश प्राथमिक संवर्ग के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे प्राथमिक संवर्ग ने *प्रदेश अध्यक्ष अजीत सिंह* ने महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा से संगठन की वार्ता के दौरान कही। 

*प्रदेश महामंत्री भगवती सिंह* ने कहा कि कम नामांकन वाले विद्यालयों का युग्मन भले ही विभाग गुणवत्तापूर्णं शिक्षा, संसाधनों का अधिकतम उपयोग और शिक्षकों की उपलब्धता जैसे लुभावने तर्कों से सही ठहराए, किन्तु इस आदेश से शिक्षा का अधिकार अधिनियम की आत्मा पर सीधा प्रहार हो रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम कोई आदेश मात्र नहीं, अपितु संविधान की वह अभिव्यक्ति है, जो एन०ई०पी०2020 प्रत्येक बच्चे को उसकी पहुंच में जहां वह है, उसे शिक्षा का अधिकार प्रदान करती है। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा के लाखों छात्रों एवं शिक्षकों के भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए इस आदेश का विरोध करते हुए उसे वापस लेने की मांग करता है। 

*प्रदेशीय संगठन मंत्री शिवशंकर सिंह* ने कहा कि बेसिक शिक्षा के विद्यालयों में कम नामांकन का प्रमुख कारण इन विद्यालयों में मूलभूत अवस्थापना सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की कमी से शिक्षा की गुणवत्ता का प्रभावित होना है। शिक्षकों को प्रतिवर्ष गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाने से बेसिक शिक्षा के प्रति विभागीय असंवेदनशीलता का सन्देश समाज में जाने से भी नामाकंन प्रभावित होता है। परिषदीय विद्यालयों के नजदीक अधिक संख्या में प्राइवेट विद्यालयों को मान्यता प्रदान की गयी है। प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश की न्यूनतम आयु 6 वर्ष है तथा आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्री प्राइमरी कक्षाओं का संचालन व्यावहारिक रूप से सफल नहीं है। 5 वर्ष की आयु पूर्ण कर बच्चे का प्रवेश प्राथमिक विद्यालयों में न होने से प्राइवेट विद्यालय आसानी से इन बच्चों का प्रवेश अपने यहां कर लेते हैं। इसके आलावा घटती प्रजनन दर एवं शहरों की ओर पलायन भी परिषदीय विद्यालयों में नामांकन की कमी के कारण हैं। विद्यालय युग्मन से प्रशिक्षु शिक्षकों का भविष्य अन्धकारमय हो गया है, क्योंकि विद्यालय बंद होने से शिक्षकों के पद समाप्त होगें और समाज में सरकार के प्रति नकारात्मकता का भाव बढ़ेगा।  

*प्रदेशीय कार्यकारी अध्यक्ष मातादीन द्विवेदी* ने कहा कि सरकार को परिषदीय विद्यालयों को बंद करने की जगह मूलभूत सुविधाएं जैसे प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में पर्याप्त कक्षा कक्ष और जूनियर विद्यालय में 3 कक्षा-कक्ष के साथ पृथक-पृथक पुस्तकालय, स्मार्ट क्लास रूम, लैब, भण्डार गृह, किचेन एवं भोजनालय, खेल का मैदान, प्रत्येक कक्षा के लिए शिक्षक, स्थायी प्रधानाध्यापक, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, तकनीकी शिक्षा के लिए पृथक से विषय विशेषज्ञ शिक्षक एवं एक क्लर्क व एक अनुचर की नियुक्ति अनिवार्य रूप से करना चाहिए जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रत्येक बच्चे के लिए सुलभ हो सके।



 

 

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Ava Lust
19 September, 2019

It's ironic that when the then-understood Latin was scrambled, it became as incomprehensible as Greek; the phrase 'it's Greek to me' and 'greeking' have common semantic roots!

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Michaels Oert
12 September, 2019

It's ironic that when the then-understood Latin was scrambled, it became as incomprehensible as Greek; the phrase 'it's Greek to me' and 'greeking' have common semantic roots!

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Jordi Paul
28 August, 2019

It's ironic that when the then-understood Latin was scrambled, it became as incomprehensible as Greek; the phrase 'it's Greek to me' and 'greeking' have common semantic roots!

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