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दोहरा रवैया: बेटों को इंग्लिश, बेटियों को सरकारी स्कूल

बेटों को अंग्रेजी, बेटियों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं अभिभावक नई दिल्ली। देश की विभिन्न बोर्ड परीक्षाओं से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं तक में बेटियां लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहीं हैं। इसके बावजूद बेटा और बेटी में भेदभाव हो रहा। अभिभावक बेटों को अंग्रेजी तो बेटियों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं। यह खुलासा शिक्षा मंत्रालय के सभी 66 बोर्ड के वर्ष 2024 के रिजल्ट की अध्ययन रिपोर्ट में हुआ है।

बेटी को बोझ समझने, शिक्षा पर खर्च न करने की सामाजिक कुरीति और दिक्कतों के बावजूद कक्षा में उपस्थिति, पढ़ाई और रिजल्ट बेहतर है। पिछले 11 साल में 10वीं कक्षा में एससी वर्ग की बेटियों की संख्या 14.75 तो एसटी में 81.33 फीसदी तक बढ़ी है। सरकार के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शिक्षा मंत्रालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की सिफारिशों के तहत

स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, मूल्यांकन की एक समान पद्धति, देशभर के सभी स्कूलों में एक पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय दाखिला प्रवेश परीक्षा में सभी को बराबर मौका देने, शिक्षकों की एक जैसी ट्रेनिंग एवं योग्यता आदि को लागू करने पर काम कर रहा। इसके तहत मंत्रालय ने केंद्र और राज्यों के 66 नियमित एवं ओपन स्कूल बोर्ड के वर्ष 2024 के रिजल्ट का अध्ययन किया है। इसका मकसद स्कूली शिक्षा की कमियों में सुधार लाना है।

10वीं में एसटी वर्ग की बेटियों का पास फीसदी बढ़कर 119 हुआ 10वीं कक्षा में बेटियों की संख्या 2013 में 82.2 लाख थी, जो 2025 में 9.45 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 90 लाख दर्ज किया गया। इसमें एससी वर्ग में 14.75 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 14 लाख से 16 लाख और एसटी वर्ग में 81.33 फीसदी बढ़त के साथ आंकड़ा 4.1 लाख से 7.4 लाख तक पहुंच गया है। पास फीसदी की बात करें तो पिछले 11 साल में यह आंकड़ा 68.1 फीसदी है। इसमें एसटी वर्ग में 79.1 फीसदी और एसटी वर्ग में 118.8 फीसदी तक हो गया।

बेटियों की पहली पसंद अब आर्ट्स नहीं साइंस : बेटियों की पहली पसंद अब आर्ट्स नहीं साइंस स्ट्रीम हो गई है। पिछले 11 साल में साइंस से पढ़ाई करने वाली बेटियों की संख्या 110 फीसदी बढ़ी है। इसमें भी एससी वर्ग में बेटियों की भागीदारी 142.2 फीसदी और एसटी वर्ग 149 फीसदी तक बढ़ी है।

12वीं कक्षा में एससी वर्ग की बेटियों का पास फीसदी 252 फीसदी पहुंचा बेटियां अब 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर रहीं। 2013 में 12वीं कक्षा में बेटियों की भागदारी 59.8 लाख थी, जो 2024 में 71.7 लाख तक पहुंच गई। यानी 19.8 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इसमें एससी वर्ग की बेटियों का आंकड़ा 27.8 फीसदी और एसटी वर्ग में 45 फीसदी तक बढ़ा है। एसटी वर्ग की बेटियों का पास फीसदी 252 फीसदी और एसटी वर्ग में 159 फीसदी तक पहुंच गया है।

10वीं में ड्रापआउट 47 फीसदी कम दसवीं कक्षा में ड्रापआउट करीब 47 फीसदी तक कम हुआ है। अब 26.6 लाख छात्र दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहे। इनमें से 4.43 लाख छात्र परीक्षा नहीं देते हैं। वहीं, 22.17 लाख छात्र अनुत्तीर्ण हो जाते हैं।

वर्ष 2013 में ड्रापआउट का आंकड़ा 41.53 लाख था। वहीं, ओपन स्कूल में इस कक्षा में महज 6.98% पंजीकृत और 3.4 लाख छात्र उत्तीर्ण हो रहे हैं।

खराब नतीजों के चलते केंद्र ने की 7 राज्यों को एक समान बोर्ड अपनाने की सिफारिश शिक्षा मंत्रालय ने सात राज्यों को कक्षा 10 और 12 के लिए एक समान बोर्ड अपनाने की सिफारिश की है। स्कूल शिक्षा विभाग ने पाया कि पिछले साल इन सातों राज्यों में 66 प्रतिशत छात्र फेल हुए थे। ये सात राज्य हैं आंध्र प्रदेश, असम, केरल, मणिपुर, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ।

स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार ने कहा, कक्षा 10 और 12 के लिए एक समान बोर्ड स्कूली शिक्षा को आसान बनाने का एक तरीका है।

 

All Comments

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Ava Lust
19 September, 2019

It's ironic that when the then-understood Latin was scrambled, it became as incomprehensible as Greek; the phrase 'it's Greek to me' and 'greeking' have common semantic roots!

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Michaels Oert
12 September, 2019

It's ironic that when the then-understood Latin was scrambled, it became as incomprehensible as Greek; the phrase 'it's Greek to me' and 'greeking' have common semantic roots!

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Jordi Paul
28 August, 2019

It's ironic that when the then-understood Latin was scrambled, it became as incomprehensible as Greek; the phrase 'it's Greek to me' and 'greeking' have common semantic roots!

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